Monday, 30 August 2021

 

पुस्तक समीक्षा

 

पुस्तक  का नाम

अग्नि की उड़ान

पुस्तक का लेखक

डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम एवं अरुण कुमार तिवारी

प्रकाशन

प्रभात प्रकाशन

पृष्ठ

191

पुस्तक की कीमत

Rs. 247/-

 

अगर आप एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में और ज़्यादा जानना  चाहते हैं, तो ये बुक आपके लिए है. वो एक मेहनती स्टूडेंट, समर्पित मिसाइल साइंटिस्ट और बहुत पसंद किये जाने वाले  लीडर थे।  ये कहानी आपको, तमिलनाडु में उनके  बचपन से लेकर DRDO और ISRO में उनके इम्पोर्टेन्ट कंट्रीब्यूशन तक की जर्नी के बारे में बताएगी । इस बुक में आप एरोस्पेस के बारे में कई बातें जानेंगे ।आप  इंडिया के मिसाइल मैन कहे जाने वाले एपीजे से लाइफ के इम्पोर्टेन्ट लेसंस भी सीखेंगे ।

अग्नि की उड़ान (wings of fire) : यह बुक किसे पढनी चाहिये ।

स्टूडेंट्स, टीचर्स, जो साइंटिस्ट बनना चाहते हैं, जो सिविल सर्वेंट बनना चाहते हैं ।

अग्नि की उड़ान (wings of fire) आँथर के बारे में -:

एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल साइंटिस्ट और भारत के पूर्व प्रेजिडेंट हैं । उन्हें सब प्यार से मिसाइल मैन कहते हैं । अरुण तिवारी एक प्रोफेसर और मिसाइल साइंटिस्ट  हैं । उन्होंने डीआरडीओ में कलाम के साथ काम किया है । साथ में, उन्होंने 5 बुक्स लिखीं हैं ।

अग्नि की उड़ान के लेखक ए पी जे अब्दुल कलाम के बचपन के बारे में -:

ए. पी. जे. अब्दुल कलाम कहते है मै एक गहरा कुंआ हूँ इस ज़मीन पर बेशुमार लड़के लड़कियों के लिए कि उनकी प्यास बुझाता रहूँ । उसकी बेपनाह रहमत उसी तरह ज़र्रे ज़र्रे पर बरसती है जैसे कुंवा सबकी प्यास बुझाता है । इतनी सी कहानी है मेरी, जैनुलब्दीन और आशिंअम्मा के बेटे की कहानी । उस लड़के की कहानी जो अखबारे बेचकर अपने भाई की मदद करता था । उस शागिर्द की कहानी जिसकी परवरिश शिव सुब्र्यमानियम अय्यर और आना दोरायिसोलोमन ने की । उस विद्यार्थी की कहानी जिसे पेंडुले मास्टर ने तालीम दी, एम्.जी.के. मेनन और प्रोफेसर साराभाई ने इंजीनियर की पहचान दी । जो नाकामियों और मुश्किलों में पलकर सायिन्स्दान बना और उस रहनुमा की कहानी जिसके साथ चलने वाले बेशुमार काबिल और हुनरमंद लोगों की टीम थी ।

मेरी कहानी मेरे साथ ख़त्म हो जायेगी क्योंकि दुनियावी मायनों में मेरे पास कोई पूँजी नहीं है, मैंने कुछ हासिल नहीं किया, जमा नहीं किया, मेरे पास कुछ नहीं और कोई नहीं है मेरा ना बेटा, ना बेटी ना परिवार । मै दुसरो के लिए मिसाल नहीं बनना चाहता लेकिन शायद कुछ पढने वालो को प्रेणना मिले कि अंतिम सुख रूह और आत्मा की तस्कीन है, खुदा की रहमत है, उनकी वरासत है । मेरे परदादा अवुल, मेरे दादा फ़कीर और मेरे वालिद जेनालुब्दीन का खानदानी सिलसिला अब्दुल कलाम पर ख़त्म हो जाएगा लेकीन खुदा की रहमत कभी ख़त्म नहीं होगी क्योंकि वो अमर है ।



मेरे अब्बा मुश्किल से मुश्किल रूहानी मामलो को भी तमिल की आम जबान में बयान कर लिया करते थे. एक बार मुझसे कहा थाजब आफत आये तो आफत की वजह समझने की कोशिश करो, मुश्किल हमेशा खुद को परखने का मौका देती है

मैंने हमेशा अपनी साईंस और टेक्नोलोजी में अब्बा के उसुलूँ पर चलने की कोशिश की है । मै इस बात पर यकीन रखता हूँ की हमसे ऊपर भी एक आला ताकत है, एक महान शक्ति है जो हमें मुसीबत, मायूसी और नाकामियों से निकाल कर सच्चाई के मुकाम तक पहुचाती है ।

मै करीब छेह बरस का था जब अब्बा ने एक लकड़ी की कश्ती बनाने का फैसला किया जिसमे वो यात्रियों को रामेश्वरम से धनुषकोटि का दौरा करा सके । ले जाए और वापस ले आये । एक और हमारे रिश्तेदार के साथ अहमद जलालुदीन, बाद में उनका निकाह मेरी आपा जोहरा के साथ हुआ । अहमद जलालुदीन हालाँकि मुझसे पंद्रह साल बड़े थे फिर भी हमारी दोस्ती आपस में जम गयी थी । जलालुदीन ज्यादा पढ़ लिख नहीं सके उनके घर की हालत की वजह से लेकिन मै जिस ज़माने की बात कर रहा हूँ, उन दिनों हमारे इलाके में सिर्फ एक वही शख्स था जो अंग्रेजी लिखना जानता था ।

और एक शख्स जिसने बचपन में मुझे बहुत मुद्दफिक किया वो मेरा कजिन था, मेरा चचेरा भाई शमसुदीन और उसके पास रामेश्वरम में अखबारों का ठेका था और सब काम अकेले ही किया करता था. हर  सुबह अखबार रामेश्वरम रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से पहुचता था. सन 1939 में दूसरी आलमगीर जंग शुरू हुई, द सेकंड वर्ड वार, उस वक्त मै आठ साल का था । एक इमरजेंसी जैसे हालात पैदा हो गए थे. सिर्फ पहली दुर्घटना ये हुई कि रामेश्वरम स्टेशन पर ट्रेन का रुकना केंसिल कर दिया गया और अखबारों का गठ्ठा अब रामेश्वरम और धनुषकोटी के बीच से गुज़रनेवाली सड़क पर चलती ट्रेन से फेंक दिया जाता । शमसुदीन को मजबूरन एक मददगार रखना पड़ा जो अखबारों के गठ्ठे सड़क से जमा कर सके, वो मौका मुझे मिला और शमसुदीन मेरी पहली आमदनी की वजह बना ।

सन1950 में मै इंटर मीडिएट पढने के लिए सेंट जोसेफ कोलेज त्रिची में दाखिल हो गया. बी.एस.सी पास करने के बाद ही जान पाया कि फिजिक्स मेरा सब्जेक्ट नहीं था ।

अग्नि की उड़ान के लेखक ए पी जे अब्दुल कलाम के इंजीनियरिंग के दौरान -:

किसी तरह मै एम आई टी यानी मद्रास इंजीयरिंग और टेक्नोलोजी के उमीद्वारो की लिस्ट में तो आ गया लेकिन उसका दाखिला बहुत महंगा था कम से कम एक हज़ार रुपयों की ज़रुरत थी और मेरे अब्बा के पास इतने पैसे नहीं थे । उस वक्त मेरी अक्का, मेरी आपा जोहरा ने अपने सोने के कड़े और चेन बेचकर मेरी फीस का इतेजाम किया ।

मेकेनिकल इंजीयरिंग में दाखिले से पहले ही मैंने उनसे सलाह ली थी। उन्होंने मुझे समझाया था किमुस्तकबिल का फैसला करने से पहले मुस्तकबिल की मुमकिनियत के बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि सोचना चाहिए एक अच्छी बुनियाद के लिए और अपने रुझान और रिश्तियात के बारे में कि उनमे कितनी शिद्दत है, एप्टीटयुड और इन्सिपिरेशन में कितनी इन्टेन्सिटी है । मै खुद भी होने वाले इंजीनियर स्टूडेंट्स से ये कहना चाहता हूँ कि जब वे अपने स्पेशिलाइजेशन का चुनाव करे तो देखना होगा कि उनमे कितना शौक है कितना उत्साह और लगन है उस शौक में जाने के लिए ।

एम् आई टी से मै बेंगलोर के हिन्दुस्तान एरोनोटीकल लिमिटेड में बतौर ट्रेनी दाखिल हो गया । एचएएल से जब मै एरोनोटीकल इंजीयरिंग में ग्रेजुएट बनकर निकला तो जिंदगी ने दो मौके मेरे सामने खड़े कर दिए । एक मौका था एयरफोर्स का दूसरा मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेन्स में डायरेक्टरेट ऑफ़ टेक्नीकल डेवलपमेंट और प्रोडक्शन का । मैंने दोनों में अर्जी भेज दी और बावक्त दोनों से इंटरव्यू का बुलावा आ गया. एयरफोर्स के लिए मुझे देहरादून बुलाया गया था और डिफेन्स के लिए दिल्ली । डिफेन्स मिनिस्ट्री का इंटरव्यू दिया. इंटरव्यू अच्छा हुआ था वहां से मै देहरादून गया एयरफोर्स सिलेक्शन बोर्ड के इंटरव्यू के लिए । पच्चीस उमीद्वारो में मै नवें नंबर पर आया. मेरा दिल बैठ गया ।
बहुत मायूस हुआ और कई दिन तक अफ़सोस रहा कि एयरफोर्स में जाने का मौका मेरे हाथ से निकल गया. मै ऋषिकेश चला गया, फिर कुछ दिन बाद मै दिल्ली लौट आया ।

डिफेन्स में अपने इंटरव्यू का नतीजा जवाब में मुझे अपोइंटमेंट लैटर थमा दिया गया. और अगले दिन से सीनियर साइंटिफिक अस्सिस्टेंट मुकर्रर कर दिया गया ढाई सौ रूपये के महीना तनख्वाह पर । तीन साल गुजर गए । उन्ही दिनों बंगलोर में एरोनौटिकल डेवलपमेंट एश्टेबिलिश्मेंटADE का नया महकमा खुला और मुझे वहां पोस्ट कर दिया गया ।

मै मुंबई चला गया इंटरव्यू देने । मेरा इंटरव्यू लेने वालो में विक्रम साराभाई, एम्.जी.के मेनन के अलावा मिस्टर सराफ थे जो उस वक्त एटॉमिक एनर्जी कमीशन के डेपुटी सेक्रेटरी के ओहदे पर थे । अगले ही दिन मुझे खबर मिली कि मै चुन लिया गया । मुझे इन्कोस्पर में राकेट इंजीनियर की हैसियत से शामिल कर लिया गया था । सन 1962 में देरेना हिस्से में कहीं इन्कोस्पर ने थुम्बा में इक्वेटोरियल राकेट लांच स्टेशन बनाने का फैसला किया । थुम्बा केरल में त्रिवेंद्रम से परे दूर दराज़ के एक उंघते से गाँव का नाम है । उसके फ़ौरन बाद ही मुझे छेह महीने के लिए अमेरिका भेज दिया गया । नासा में राकेट लौन्चिंग की ट्रेनिंग के लिए । जाने से पहले मै थोडा सा वक्त निकाल कर रामेश्वरम गया । मेरे अब्बा मेरी इस कामयाबी के लिए बहुत खुश हुए ।

 मै जैसे ही नासा से लौटा फ़ौरन बाद ही हिन्दुस्तान का पहला राकेट लांच वाकया हुआ । 21नवम्बर 1963, वो साउन्डिंग राकेट था, नाम अपाचे नाइकी । नाइकी अपाचे की कामयाबी के बाद प्रो. साराभाई ने अपनी आरज़ू, अपने ख्वाब का इज़हार किया । एक इंडियन सेटेलाईट लांच व्हीकल ISLV का सपना । हिन्दुस्तानी राकेट का सपना 20वी सदी का ख्वाब भी कहा जा सकता है ।

1799 में तिरुनेलवेली की जंग के बाद वो रॉकेट्स विलिंयम कांगेरी ने इंग्लैंड भिजवा दिए जांच पड़ताल के लिए । उसकी तकनीक समझने के लिए जिसे आज की साइंस जुबांन में हम रिवर्स इंजीयरिंग कहते है ।थुम्बा में दो राकेट सहज पके और कामयाब हुए एक रोहिनी और दूसरा मेनिका ।

1990 के रिपब्लिक डे पर देश ने अग्नि व् मिसाईल प्रोग्राम की कामयाबी का जश्न मनाया | मुझे पद्म विभूषण से नवाज़ा गया और डा. अरुणाचलम को भी ।

अग्नि की उड़ान के लेखक ए पी जे अब्दुल कलाम अपने अंतिम दिनों में -:

10 x12 का एक कमरा किताबो से भरा हुआ और कुछ ज़रुरत का फर्नीचर जो किराए पर लिया था । मेरे ख्याल से मेरे वतन के नौजवानों को एक साफ़ नज़रिए और एक दिशा की ज़रुरत है तभी ये इरादा किया कि उन तमाम लोगो का जिक्र करूँ जिनकी बदौलत मै ये बन सका जो मै हूँ | मकसद ये नहीं था कि मै बड़े बड़े लोगो के नाम लूँ बल्कि ये कि कोई भी शख्स कितना भी छोटा क्यों ना हो उसे हौसला नहीं छोड़ना चाहिए |

मसले, मुश्किलें जिंदगी का हिस्सा है और तकलीफे कामयाबी की सच्चाई | जैसा कहा है किसी ने किखुदा ने ये वादा नहीं किया कि आसमान हमेशा नीला ही रहेगा, जिंदगी भर फूलों से भरी राहे ही मिलेंगी, खुदा ने ये वादा नहीं किया कि सूरज है तो बादल नहीं होंगे, ख़ुशी है तो गम नहीं,सुकून है तो दर्द नहीं होगा | मुझे ऐसा कोई गुमान नहीं कि मेरी जिंदगी सबके लिए एक मिसाल बने मगर ये हो सकता है कि कोई मायूस बच्चा किसी गुमनाम सी जगह पर जो समाज के किसी माजूर से हिस्से से ताल्लुक रखता हो, ये पढ़े और उसे चैन मिले, ये पढ़े और उसकी उम्मीद रोशन हो जाए | हो सकता है कि ये कुछ बच्चो को नाउम्मीदी से बाहर ले आये और जिसे वो मजबूरी समझते है वो मजबूरी ना लगे |उन्हें यकीन रहे कि वो जहाँ भी है, खुदा उनके साथ है | काश हर हिन्दुस्तानी के दिल में जलती हुई लौ को पर लग जाए और उस लौ की परवाज़ से सारा आसमाँ रोशन हो जाए |


BOOK REVIEW : WINGS OF FIRE

 BOOK REVIEW

 

Name of the Book

Wings of Fire

Name of the Author

Dr. APJ Abdul Kalam & Arun Kumar Tiwari

Name of the Publisher

Sangam Books Limited

Pages

196

Cost of the Book

Rs. 425/-


 If you want to know more about APJ Abdul Kalam, then this book is for you.  He was a hardworking student, dedicated missile scientist and a well-liked leader.  This story will tell you about her journey from her childhood in Tamil Nadu to DRDO and her important contribution to ISRO.  In this book, you will learn many things about aerospace. You will also learn important lessons of life from APJ, called India's Missile Man.

 Wings of fire :  Who should read this book?

 Students, teachers, who want to become scientists, who want to become civil servants.

 Wings of fire : About the anther:

 APJ Abdul Kalam is a Missile Scientist and former President of India.  He is affectionately called Missile Man.  Arun Tiwari is a Professor and Missile Scientist.  He has worked with Kalam in DRDO. Together, he has written 5 books.

About the childhood of APJ Abdul Kalam, author of wings of fire -:

 A.P.J.  Abdul Kalam says I am a deep well on this land for uncountable boys and girls to quench their thirst.  His unselfish mercy rains on Zarere just as the well quenches everyone's thirst.  Such a story is the story of Mary, Zainulbadin and Ashinamma's son.  The story of a boy who helped his brother by selling newspapers.  The story of the protagonist who was raised by Shiva Subramaniam Iyer and Anna Doraisolomon.  The story of the student trained by the Pendule Master, M.G.K.  Menon and Professor Sarabhai gave the identity of the engineer.  The one who grew up in failure and difficulties became Sayinsdan, and the story of the primate who was accompanied by a team of uncountable, capable and skilled people.

 My story will end with me because in the worldly ways I have no capital, I have not gained anything, I have not accumulated, I have nothing and no one, neither my son, nor daughter nor family.  I do not want to be an example for others, but maybe some reading people will be praised that the ultimate happiness is spirit and soul, God has mercy, their heritage.  My great grandfather Avul, my grandfather Fakir and my father Janelubdin's dynasty will end on Abdul Kalam, but God will never die because he is immortal.

 My father used to narrate even the most difficult spiritual matters in the common language of Tamil.  Once said to me "When trouble comes, try to understand the cause of the trouble, difficulty always gives you the chance to test yourself".

 I have always tried to follow Abba's Usulu in my science and technology.  I believe that there is a great power above us, a great power that takes us out of trouble, despair and failure to reach the point of truth.

 I was about six years old when Abba decided to make a wooden kayak in which he could take the passengers from Rameswaram to Dhanushkoti.  Take it and bring it back.  Ahmad Jalaludin with another relative, later he was married to Mary Apa Zohra.  Ahmad Jalaludin, although fifteen years older than me, our friendship was frozen.  Jalaludin could not read much because of the condition of his house, but the time I am talking about, in those days there was only one person in our area who knew how to write English.

And one person who took a lot of trouble in my childhood was my cousin, my cousin Shamsudin and he had a newspaper contract in Rameswaram and used to do all the work alone.  Every morning the newspaper reached Rameswaram railway station by train.  The second Alamgir war started in 1939, The Second Word War, at the time I was eight years old.  An emergency-like situation had arisen.  Only the first accident was that the train stop at Rameswaram station was canceled and the newspapers were now thrown from the moving train on the road passing between Rameswaram and Dhanushkoti.  Shamsudeen was forced to keep a helper who could collect newspapers from the road, I got that chance and Shamsuddin became the reason for my first income.

 In 1950, I joined St. Joseph's College Trichy to study Intermediate.  It was only after passing B.Sc. that I knew that physics was not my subject.

 During the engineering of APJ Abdul Kalam, the author of Wings of Fire: -

Somehow I got in the list of candidates of MIT i.e. Madras Engineering and Technology but its admission was very expensive, at least one thousand rupees was required and my father did not have that much money.  My aka, my temper Zohra at that time, sold her gold rings and chains and used my fees.

I had consulted him even before enrolling in mechanical engineering.  He explained to me that before deciding to "Mustakabil, one should not think of Mustakabil's potential but rather for a good foundation and how much strength is there in Aptitude and Inspiration about their instincts and relationships."  .  I want to tell the engineer students who are themselves that when they choose their specialization, then it has to be seen how much hobby and passion they have to go to that hobby.

 From MIT, I joined Hindustan Aeronautical Limited, Bangalore as a trainee.  When I came out of HAL as a graduate in aeronautical engineering, life gave me two opportunities.  There was an opportunity for the Directorate of Technical Development and Production in Airforce's second Ministry of Defense.  I sent an application to both of them and an interview was invited from both of them.  I was called to Dehradun for the Air Force and Delhi for defense.  Gave an interview with the defense ministry.  The interview was good from there, I went to Dehradun for an interview with the Air Force Selection Board.  I came in number nine in twenty five hopefuls.  My heart sank.

 I was very disappointed and regretted for several days that the opportunity to go to the Air Force was lost.  I left for Rishikesh, then a few days later I returned to Delhi.

 In response to my interview in defense, I was handed an appointment letter.  And from the next day, Senior Scientific Assistant was released on a salary of 250 rupees per month.  Three years passed.  In those days, a new department of Aeronautical Development Establishment ADE opened in Bangalore and I was posted there.

 I went to Mumbai to give interviews.  Among those interviewing me were Vikram Sarabhai, MGK Menon, Mr. Saraf, who was then the deputy secretary of the Atomic Energy Commission.  The very next day I received the news that I had been selected.  I was inducted as a rocket engineer at Incospar.  In 1962, somewhere in Derena, Incospar decided to build Equatorial Rocket Launch Station at Thumba.  Thumba is the name of a high-altitude village in Daraz, beyond Trivandrum in Kerala.  Shortly thereafter, I was sent to America for six months.  To train rocket launching at NASA.  Before leaving I took a little time and went to Rameswaram.  My father was very happy for my success.

Soon after I returned from NASA, the first rocket launch of India happened.  November 21, 1963, it was the sounding rocket, named Apache Nike.  After the success of Nike Apache, Prof Sarabhai expressed his resume, his dream.  Dream of an Indian satellite launch vehicle ISLV.  The dream of the Indian rocket can also be called the dream of the 20th century.
 After the battle of Tirunelveli in 1799, those rockets were sent to England by William Kangeri for investigation.  To understand his technique, which we call reverse engineering in today's Science Juban. Two rockets were spontaneously cooked and thundered in Thumba, one being Rohini and the other Manika.

On Republic Day 1990, the country celebrated the success of the fire and missile program.  I was awarded the Padma Vibhushan and also Dr. Arunachalam.

 

APJ Abdul Kalam, writer of Wings of Fire - in his last days -:

A room of 10 by 12 is full of books and some necessary furniture which was rented.  I think the youth of my country need a clear vision and a direction only when I intend that I should mention all those people, because of which I could become this.  The motive was not that I should take the names of great people, but that no person, no matter how small, should not be encouraged.
 Issues, difficulties are part of life and trouble is the truth of success.  As someone has said that "God did not promise that the sky will always be blue, there will be full of flowers filled with life, God has not promised that there will be no clouds if there is sun, no happiness, no sorrow.  There will be no pain.  I have no qualms about making my life an example for everyone, but it may be that a desolate child who lives in an anonymous place who belongs to a section of society, read it and gets rest, read it and his  Hope brightens up.  It may be that they bring some children out of hope and that they feel compulsion should not feel compelled. They believe that God is with them wherever they are.  Wish every Indian has a burning flame, and the flame of that flame will brighten the whole sky.

 

 

Tuesday, 17 August 2021

Book review : My Journey : Transforming Dreams into Actions

 

BOOK REVIEW

 



Name of the Book

My Journey: Transforming Dreams into Actions

Name of the Author

Dr. APJ Abdul Kalam

Name of the Publisher

Rupa Publications

Pages

160

Cost of the Book

Rs. 156/-

  • “I am not a handsome guy, but I can give my hand to some who needs help. Beauty is in heart and not in face.”

                                                                                                   -  Dr. Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam

 This very famous quote has inspired many youth and adults that it is your actions that make you beautiful and not you outer look. Not only this, but many quotes by him have ignited the mind of young leaders. Dr. A.P.J. Abdul Kalam, the eleventh president of India, aeronautical engineer resides in many people’s heart. He has written various books to help youth to dream and live their dreams. His speech has got a magic that can influence any one.

My Journey is a book, where Kalam Sir has penned down his experiences and lessons that life has taught him. My journey focuses more on the smaller, lesser known happenings in his life with great teachings for the readers. In this book Kalam Sir writes about his father, from whom he learnt the quality of humbleness, loyalty and faith in God. He writes about his father’s friendship with a Hindu priest, with a father of a church and how they maintained peace and harmony.

He writes about his teacher, who tried to separate Kalam from his best friend just because he was a Muslim and how these three divine people took action to maintain equality in their town. He further writes about his mother and grandmother who gave their share of food so that children of the house don’t remain hungry, he writes about poor income of the family.

His  sister Firoza who sold her jewelleries so that Kalam Sir could go for further studies, he writes about his school, about professors in college, teachers in school, Leadership quality of Vikram Sarabhai, about his work as a newspaper seller boy at the age of eight, Sudhakar’s story of courage, importance of Holy scriptures and about his life.

This is a must read and must have book. This book can be read by people of any age be it a child, a youth or an adult. This book should also be read by teachers where he actually defines what teachers exactly means, this book should be read by the management of school and college to understand that quality does not come from a great building or great facilities or great advertisements, it happens when education is imparted with love by great teachers.

This book should be read by youths and adults where he explains to never stop dreaming, this book should also be read by small children where he explains about hard work that should be imparted to children in small age. His description about various Holy Scriptures, about life and death, about the quality of a leader, about his energy and enthusiasm to work at a very small age, about his dream, about destiny and in between poems surely touches the heart of reader. Every story covered in this book is nostalgic and gives us beautiful lessons. For me this book is no less than a Holy Scripture.

- Keshav Ram Sharma, Librarian KV Hamirpur

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