Dear students,
Kindly open the link given below and participate in the Quiz on TOKYO OLYMPICS 2020 (HELD IN 2021).
https://docs.google.com/forms/d/18m25hkTwrZOpE_K4RMykoay1W9dWlsXaTUTt4rr4oeg/edit
Keshav Ram Sharma
Librarian
Dear students,
Kindly open the link given below and participate in the Quiz on TOKYO OLYMPICS 2020 (HELD IN 2021).
https://docs.google.com/forms/d/18m25hkTwrZOpE_K4RMykoay1W9dWlsXaTUTt4rr4oeg/edit
Keshav Ram Sharma
Librarian
Dear students,
Greetings of the day !
Today Mr. Ayushman student of 12B was Librarian on the occassion of Teachers Day. He prepared a quiz for you people. Kindly participate in the quiz by opening the link given below and recognise his efforts. By clicking on the link given below you will be reach at the quiz. Participate in the quiz and highest scorer will attract exciting prize.
https://docs.google.com/forms/d/1B8udY11t_rcwuVdpYyEjDGlMRZ036GeDYrt6EK6YoSw/edit
Ayushman
12B
06 Sep 2021
Dear students & Respected Teachers !
Greetings of the Day !
With great pleasure it is to inform you that Worthy Principal Sir has approved Rs. 50000/- for purchase of new books for the library. Therefore it is requested to send your recommendations for books selection as per the google form attached. Kindly open the link given below and put your recommendations in the form. Books should be student centric to ensure there holistic development and entertainment.
https://forms.gle/qETD6Ys7FNU9FefCA
Keshav Ram Sharma
Librarian
03 Sep 2021
पुस्तक का नाम |
अग्नि की उड़ान
|
|
पुस्तक का
लेखक |
डॉ ए पी जे
अब्दुल कलाम एवं अरुण कुमार तिवारी |
|
प्रकाशन |
प्रभात
प्रकाशन |
|
पृष्ठ |
191 |
|
पुस्तक की
कीमत |
Rs. 247/- |
अगर
आप एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में और ज़्यादा जानना चाहते हैं, तो ये बुक आपके लिए है. वो एक मेहनती स्टूडेंट, समर्पित मिसाइल साइंटिस्ट और बहुत पसंद किये जाने वाले लीडर थे। ये कहानी आपको, तमिलनाडु में उनके बचपन से लेकर DRDO
और ISRO में उनके इम्पोर्टेन्ट
कंट्रीब्यूशन तक की जर्नी के बारे में बताएगी । इस बुक में आप एरोस्पेस के बारे
में कई बातें जानेंगे ।आप इंडिया के मिसाइल मैन कहे
जाने वाले एपीजे से लाइफ के इम्पोर्टेन्ट लेसंस भी सीखेंगे ।
अग्नि की उड़ान (wings of fire) : यह बुक किसे पढनी चाहिये ।
स्टूडेंट्स, टीचर्स,
जो साइंटिस्ट बनना चाहते हैं, जो सिविल
सर्वेंट बनना चाहते हैं ।
अग्नि की उड़ान (wings of fire) आँथर के बारे में -:
एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल
साइंटिस्ट और भारत के पूर्व प्रेजिडेंट हैं । उन्हें सब प्यार से मिसाइल मैन कहते
हैं । अरुण तिवारी एक प्रोफेसर और मिसाइल साइंटिस्ट हैं । उन्होंने
डीआरडीओ में कलाम के साथ काम किया है । साथ में, उन्होंने
5 बुक्स लिखीं हैं ।
अग्नि की उड़ान के लेखक ए पी जे अब्दुल कलाम के बचपन के बारे
में -:
ए. पी. जे. अब्दुल कलाम कहते
है मै एक गहरा कुंआ हूँ इस ज़मीन पर बेशुमार लड़के लड़कियों के लिए कि उनकी प्यास
बुझाता रहूँ । उसकी बेपनाह रहमत उसी तरह ज़र्रे ज़र्रे पर बरसती है जैसे कुंवा सबकी
प्यास बुझाता है । इतनी सी कहानी है मेरी, जैनुलब्दीन और
आशिंअम्मा के बेटे की कहानी । उस लड़के की कहानी जो अखबारे बेचकर अपने भाई की मदद
करता था । उस शागिर्द की कहानी जिसकी परवरिश शिव सुब्र्यमानियम अय्यर और आना
दोरायिसोलोमन ने की । उस विद्यार्थी की कहानी जिसे पेंडुले मास्टर ने तालीम दी,
एम्.जी.के. मेनन और प्रोफेसर साराभाई ने इंजीनियर की पहचान दी ।
जो नाकामियों और मुश्किलों में पलकर सायिन्स्दान बना और उस रहनुमा की कहानी जिसके
साथ चलने वाले बेशुमार काबिल और हुनरमंद लोगों की टीम थी ।
मेरी कहानी मेरे साथ ख़त्म हो जायेगी क्योंकि दुनियावी मायनों में
मेरे पास कोई पूँजी नहीं है, मैंने कुछ हासिल नहीं किया,
जमा नहीं किया, मेरे पास कुछ नहीं और
कोई नहीं है मेरा ना बेटा, ना बेटी ना परिवार । मै दुसरो
के लिए मिसाल नहीं बनना चाहता लेकिन शायद कुछ पढने वालो को प्रेणना मिले कि अंतिम
सुख रूह और आत्मा की तस्कीन है, खुदा की रहमत है, उनकी वरासत है । मेरे परदादा अवुल, मेरे दादा
फ़कीर और मेरे वालिद जेनालुब्दीन का खानदानी सिलसिला अब्दुल कलाम पर ख़त्म हो जाएगा
लेकीन खुदा की रहमत कभी ख़त्म नहीं होगी क्योंकि वो अमर है ।
मेरे अब्बा मुश्किल से मुश्किल रूहानी मामलो को भी तमिल की आम जबान में
बयान कर लिया करते थे. एक बार मुझसे कहा था” जब आफत आये तो आफत की
वजह समझने की कोशिश करो, मुश्किल हमेशा खुद को परखने का
मौका देती है’ ।
मैंने हमेशा अपनी साईंस और
टेक्नोलोजी में अब्बा के उसुलूँ पर चलने की कोशिश की है । मै इस बात पर यकीन रखता
हूँ की हमसे ऊपर भी एक आला ताकत है, एक महान शक्ति है जो हमें
मुसीबत, मायूसी और नाकामियों से निकाल कर सच्चाई के मुकाम
तक पहुचाती है ।
मै करीब छेह बरस का था जब
अब्बा ने एक लकड़ी की कश्ती बनाने का फैसला किया जिसमे वो यात्रियों को रामेश्वरम
से धनुषकोटि का दौरा करा सके । ले जाए और वापस ले आये । एक और हमारे रिश्तेदार के
साथ अहमद जलालुदीन, बाद में उनका निकाह मेरी आपा जोहरा के साथ हुआ । अहमद जलालुदीन हालाँकि
मुझसे पंद्रह साल बड़े थे फिर भी हमारी दोस्ती आपस में जम गयी थी । जलालुदीन ज्यादा
पढ़ लिख नहीं सके उनके घर की हालत की वजह से लेकिन मै जिस ज़माने की बात कर रहा हूँ,
उन दिनों हमारे इलाके में सिर्फ एक वही शख्स था जो अंग्रेजी
लिखना जानता था ।
और एक शख्स जिसने बचपन में
मुझे बहुत मुद्दफिक किया वो मेरा कजिन था, मेरा चचेरा भाई शमसुदीन और
उसके पास रामेश्वरम में अखबारों का ठेका था और सब काम अकेले ही किया करता था. हर
सुबह अखबार रामेश्वरम रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से पहुचता था. सन 1939
में दूसरी आलमगीर जंग शुरू हुई, द सेकंड
वर्ड वार, उस वक्त मै आठ साल का था । एक इमरजेंसी जैसे
हालात पैदा हो गए थे. सिर्फ पहली दुर्घटना ये हुई कि रामेश्वरम स्टेशन पर ट्रेन का
रुकना केंसिल कर दिया गया और अखबारों का गठ्ठा अब रामेश्वरम और धनुषकोटी के बीच से
गुज़रनेवाली सड़क पर चलती ट्रेन से फेंक दिया जाता । शमसुदीन को मजबूरन एक मददगार
रखना पड़ा जो अखबारों के गठ्ठे सड़क से जमा कर सके, वो मौका
मुझे मिला और शमसुदीन मेरी पहली आमदनी की वजह बना ।
सन1950 में
मै इंटर मीडिएट पढने के लिए सेंट जोसेफ कोलेज त्रिची में दाखिल हो गया. बी.एस.सी
पास करने के बाद ही जान पाया कि फिजिक्स मेरा सब्जेक्ट नहीं था ।
अग्नि की उड़ान के लेखक ए पी जे अब्दुल कलाम के इंजीनियरिंग
के दौरान -:
किसी तरह मै एम आई टी यानी
मद्रास इंजीयरिंग और टेक्नोलोजी के उमीद्वारो की लिस्ट में तो आ गया लेकिन उसका
दाखिला बहुत महंगा था कम से कम एक हज़ार रुपयों की ज़रुरत थी और मेरे अब्बा के पास
इतने पैसे नहीं थे । उस वक्त मेरी अक्का, मेरी आपा जोहरा ने अपने
सोने के कड़े और चेन बेचकर मेरी फीस का इतेजाम किया ।
मेकेनिकल इंजीयरिंग में दाखिले से पहले ही मैंने उनसे सलाह ली
थी। उन्होंने मुझे समझाया था कि” मुस्तकबिल का फैसला करने
से पहले मुस्तकबिल की मुमकिनियत के बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि सोचना चाहिए
एक अच्छी बुनियाद के लिए और अपने रुझान और रिश्तियात के बारे में कि उनमे कितनी
शिद्दत है, एप्टीटयुड और इन्सिपिरेशन में कितनी
इन्टेन्सिटी है । मै खुद भी होने वाले इंजीनियर स्टूडेंट्स से ये कहना चाहता हूँ
कि जब वे अपने स्पेशिलाइजेशन का चुनाव करे तो देखना होगा कि उनमे कितना शौक है
कितना उत्साह और लगन है उस शौक में जाने के लिए ।
एम् आई टी से मै बेंगलोर के
हिन्दुस्तान एरोनोटीकल लिमिटेड में बतौर ट्रेनी दाखिल हो गया । एचएएल से जब मै
एरोनोटीकल इंजीयरिंग में ग्रेजुएट बनकर निकला तो जिंदगी ने दो मौके मेरे सामने खड़े
कर दिए । एक मौका था एयरफोर्स का दूसरा मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेन्स में डायरेक्टरेट ऑफ़
टेक्नीकल डेवलपमेंट और प्रोडक्शन का । मैंने दोनों में अर्जी भेज दी और बावक्त
दोनों से इंटरव्यू का बुलावा आ गया. एयरफोर्स के लिए मुझे देहरादून बुलाया गया था
और डिफेन्स के लिए दिल्ली । डिफेन्स मिनिस्ट्री का इंटरव्यू दिया. इंटरव्यू अच्छा
हुआ था वहां से मै देहरादून गया एयरफोर्स सिलेक्शन बोर्ड के इंटरव्यू के लिए ।
पच्चीस उमीद्वारो में मै नवें नंबर पर आया. मेरा दिल बैठ गया ।
बहुत मायूस हुआ और कई दिन तक अफ़सोस रहा कि एयरफोर्स में जाने का
मौका मेरे हाथ से निकल गया. मै ऋषिकेश चला गया, फिर कुछ
दिन बाद मै दिल्ली लौट आया ।
डिफेन्स में अपने इंटरव्यू
का नतीजा जवाब में मुझे अपोइंटमेंट लैटर थमा दिया गया. और अगले दिन से सीनियर
साइंटिफिक अस्सिस्टेंट मुकर्रर कर दिया गया ढाई सौ रूपये के महीना तनख्वाह पर ।
तीन साल गुजर गए । उन्ही दिनों बंगलोर में एरोनौटिकल डेवलपमेंट एश्टेबिलिश्मेंटADE का नया
महकमा खुला और मुझे वहां पोस्ट कर दिया गया ।
मै मुंबई चला गया इंटरव्यू देने । मेरा इंटरव्यू लेने वालो में
विक्रम साराभाई, एम्.जी.के मेनन के अलावा मिस्टर सराफ थे
जो उस वक्त एटॉमिक एनर्जी कमीशन के डेपुटी सेक्रेटरी के ओहदे पर थे । अगले ही दिन
मुझे खबर मिली कि मै चुन लिया गया । मुझे इन्कोस्पर में राकेट इंजीनियर की हैसियत
से शामिल कर लिया गया था । सन 1962 में देरेना हिस्से में
कहीं इन्कोस्पर ने थुम्बा में इक्वेटोरियल राकेट लांच स्टेशन बनाने का फैसला किया
। थुम्बा केरल में त्रिवेंद्रम से परे दूर दराज़ के एक उंघते से गाँव का नाम है ।
उसके फ़ौरन बाद ही मुझे छेह महीने के लिए अमेरिका भेज दिया गया । नासा में राकेट
लौन्चिंग की ट्रेनिंग के लिए । जाने से पहले मै थोडा सा वक्त निकाल कर रामेश्वरम
गया । मेरे अब्बा मेरी इस कामयाबी के लिए बहुत खुश हुए ।
मै जैसे ही नासा से
लौटा फ़ौरन बाद ही हिन्दुस्तान का पहला राकेट लांच वाकया हुआ । 21नवम्बर 1963, वो साउन्डिंग राकेट था, नाम अपाचे नाइकी । नाइकी अपाचे की कामयाबी के बाद प्रो. साराभाई ने अपनी आरज़ू, अपने ख्वाब का इज़हार
किया । एक इंडियन सेटेलाईट लांच व्हीकल ISLV का सपना ।
हिन्दुस्तानी राकेट का सपना 20वी सदी का ख्वाब भी कहा जा
सकता है ।
1799 में तिरुनेलवेली की जंग
के बाद वो रॉकेट्स विलिंयम कांगेरी ने इंग्लैंड भिजवा दिए जांच पड़ताल के लिए ।
उसकी तकनीक समझने के लिए जिसे आज की साइंस जुबांन में हम रिवर्स इंजीयरिंग कहते है
।थुम्बा में दो राकेट सहज पके और कामयाब हुए एक रोहिनी और दूसरा मेनिका ।
1990 के रिपब्लिक डे पर देश
ने अग्नि व् मिसाईल प्रोग्राम की कामयाबी का जश्न मनाया | मुझे पद्म विभूषण से नवाज़ा गया और डा. अरुणाचलम को भी ।
अग्नि की उड़ान के लेखक ए पी जे अब्दुल कलाम अपने अंतिम
दिनों में -:
10 x12 का एक कमरा किताबो से
भरा हुआ और कुछ ज़रुरत का फर्नीचर जो किराए पर लिया था । मेरे ख्याल से मेरे वतन के
नौजवानों को एक साफ़ नज़रिए और एक दिशा की ज़रुरत है तभी ये इरादा किया कि उन तमाम
लोगो का जिक्र करूँ जिनकी बदौलत मै ये बन सका जो मै हूँ | मकसद ये नहीं था कि मै बड़े बड़े लोगो के नाम लूँ बल्कि ये कि कोई भी
शख्स कितना भी छोटा क्यों ना हो उसे हौसला नहीं छोड़ना चाहिए |
मसले, मुश्किलें
जिंदगी का हिस्सा है और तकलीफे कामयाबी की सच्चाई | जैसा
कहा है किसी ने कि” खुदा ने ये वादा नहीं किया कि आसमान
हमेशा नीला ही रहेगा, जिंदगी भर फूलों से भरी राहे ही
मिलेंगी, खुदा ने ये वादा नहीं किया कि सूरज है तो बादल
नहीं होंगे, ख़ुशी है तो गम नहीं,सुकून
है तो दर्द नहीं होगा | मुझे ऐसा कोई गुमान नहीं कि मेरी
जिंदगी सबके लिए एक मिसाल बने मगर ये हो सकता है कि कोई मायूस बच्चा किसी गुमनाम
सी जगह पर जो समाज के किसी माजूर से हिस्से से ताल्लुक रखता हो, ये पढ़े और उसे चैन मिले, ये पढ़े और उसकी
उम्मीद रोशन हो जाए | हो सकता है कि ये कुछ बच्चो को
नाउम्मीदी से बाहर ले आये और जिसे वो मजबूरी समझते है वो मजबूरी ना लगे |उन्हें यकीन रहे कि वो जहाँ भी है, खुदा उनके
साथ है | काश हर हिन्दुस्तानी के दिल में जलती हुई लौ को
पर लग जाए और उस लौ की परवाज़ से सारा आसमाँ रोशन हो जाए |
BOOK REVIEW
Name of the Book |
Wings
of Fire |
|
Name of the Author |
Dr. APJ Abdul Kalam & Arun
Kumar Tiwari |
|
Name of the Publisher |
Sangam Books Limited |
|
Pages |
196 |
|
Cost of the Book |
Rs. 425/- |
If you want to know more about APJ
Abdul Kalam, then this book is for you. He was a hardworking student,
dedicated missile scientist and a well-liked leader. This story will tell
you about her journey from her childhood in Tamil Nadu to DRDO and her
important contribution to ISRO. In this book, you will learn many things
about aerospace. You will also learn important lessons of life from APJ, called
India's Missile Man.
Wings of fire : Who
should read this book?
Students, teachers, who want to become
scientists, who want to become civil servants.
Wings
of fire : About the anther:
APJ Abdul Kalam is a
Missile Scientist and former President of India. He is affectionately
called Missile Man. Arun Tiwari is a Professor and Missile
Scientist. He has worked with Kalam in DRDO. Together, he has
written 5 books.
About the childhood of APJ Abdul Kalam,
author of wings of fire -:
A.P.J. Abdul Kalam says
I am a deep well on this land for uncountable boys and girls to quench their
thirst. His unselfish mercy rains on Zarere just as the well quenches
everyone's thirst. Such a story is the story of Mary, Zainulbadin and
Ashinamma's son. The story of a boy who helped his brother by selling
newspapers. The story of the protagonist who was raised by Shiva Subramaniam
Iyer and Anna Doraisolomon. The story of the student trained by the
Pendule Master, M.G.K. Menon and Professor Sarabhai gave the identity of
the engineer. The one who grew up in failure and difficulties became
Sayinsdan, and the story of the primate who was accompanied by a team of
uncountable, capable and skilled people.
My story will end with me because in the worldly ways I have no capital,
I have not gained anything, I have not accumulated, I have nothing and no one,
neither my son, nor daughter nor family. I do not want to be an example
for others, but maybe some reading people will be praised that the ultimate
happiness is spirit and soul, God has mercy, their heritage. My great
grandfather Avul, my grandfather Fakir and my father Janelubdin's dynasty will
end on Abdul Kalam, but God will never die because he is immortal.
My father used to
narrate even the most difficult spiritual matters in the common language of
Tamil. Once said to me "When trouble comes, try to understand the
cause of the trouble, difficulty always gives you the chance to test
yourself".
I have always tried to follow Abba's
Usulu in my science and technology. I believe that there is a great power
above us, a great power that takes us out of trouble, despair and failure to
reach the point of truth.
I was about six years old when Abba
decided to make a wooden kayak in which he could take the passengers from
Rameswaram to Dhanushkoti. Take it and bring it back. Ahmad
Jalaludin with another relative, later he was married to Mary Apa Zohra.
Ahmad Jalaludin, although fifteen years older than me, our friendship was
frozen. Jalaludin could not read much because of the condition of his
house, but the time I am talking about, in those days there was only one person
in our area who knew how to write English.
And one person who took a lot of trouble in
my childhood was my cousin, my cousin Shamsudin and he had a newspaper contract
in Rameswaram and used to do all the work alone. Every morning the
newspaper reached Rameswaram railway station by train. The second Alamgir
war started in 1939, The Second Word War, at the time I was eight years
old. An emergency-like situation had arisen. Only the first
accident was that the train stop at Rameswaram station was canceled and the
newspapers were now thrown from the moving train on the road passing between
Rameswaram and Dhanushkoti. Shamsudeen was forced to keep a helper who
could collect newspapers from the road, I got that chance and Shamsuddin became
the reason for my first income.
In 1950, I joined St. Joseph's College
Trichy to study Intermediate. It was only after passing B.Sc. that I knew
that physics was not my subject.
During
the engineering of APJ Abdul Kalam, the author of Wings of Fire: -
Somehow I got in the list of candidates of MIT
i.e. Madras Engineering and Technology but its admission was very expensive, at
least one thousand rupees was required and my father did not have that much
money. My aka, my temper Zohra at that time, sold her gold rings and
chains and used my fees.
I had consulted him even before enrolling in
mechanical engineering. He explained to me that before deciding to
"Mustakabil, one should not think of Mustakabil's potential but rather for
a good foundation and how much strength is there in Aptitude and Inspiration
about their instincts and relationships." . I want to tell the
engineer students who are themselves that when they choose their
specialization, then it has to be seen how much hobby and passion they have to
go to that hobby.
From MIT, I joined Hindustan
Aeronautical Limited, Bangalore as a trainee. When I came out of HAL as a
graduate in aeronautical engineering, life gave me two opportunities.
There was an opportunity for the Directorate of Technical Development and
Production in Airforce's second Ministry of Defense. I sent an
application to both of them and an interview was invited from both of
them. I was called to Dehradun for the Air Force and Delhi for
defense. Gave an interview with the defense ministry. The interview
was good from there, I went to Dehradun for an interview with the Air Force
Selection Board. I came in number nine in twenty five hopefuls. My
heart sank.
I was very disappointed and regretted
for several days that the opportunity to go to the Air Force was lost. I
left for Rishikesh, then a few days later I returned to Delhi.
In response to my interview in defense,
I was handed an appointment letter. And from the next day, Senior
Scientific Assistant was released on a salary of 250 rupees per month.
Three years passed. In those days, a new department of Aeronautical
Development Establishment ADE opened in Bangalore and I was posted there.
I went to Mumbai to give
interviews. Among those interviewing me were Vikram Sarabhai, MGK Menon,
Mr. Saraf, who was then the deputy secretary of the Atomic Energy
Commission. The very next day I received the news that I had been
selected. I was inducted as a rocket engineer at Incospar. In 1962,
somewhere in Derena, Incospar decided to build Equatorial Rocket Launch Station
at Thumba. Thumba is the name of a high-altitude village in Daraz, beyond
Trivandrum in Kerala. Shortly thereafter, I was sent to America for six
months. To train rocket launching at NASA. Before leaving I took a
little time and went to Rameswaram. My father was very happy for my
success.
Soon after I returned from NASA, the first
rocket launch of India happened. November 21, 1963, it was the sounding
rocket, named Apache Nike. After the success of Nike Apache, Prof
Sarabhai expressed his resume, his dream. Dream of an Indian satellite
launch vehicle ISLV. The dream of the Indian rocket can also be called
the dream of the 20th century.
After the battle of Tirunelveli in 1799, those rockets were sent to
England by William Kangeri for investigation. To understand his
technique, which we call reverse engineering in today's Science Juban. Two
rockets were spontaneously cooked and thundered in Thumba, one being Rohini and
the other Manika.
On Republic Day 1990, the country celebrated
the success of the fire and missile program. I was awarded the Padma
Vibhushan and also Dr. Arunachalam.
APJ Abdul Kalam, writer of
Wings of Fire - in his last days -:
A room of 10 by 12 is full of books and some necessary
furniture which was rented. I think the youth of my country need a clear
vision and a direction only when I intend that I should mention all those
people, because of which I could become this. The motive was not that I
should take the names of great people, but that no person, no matter how small,
should not be encouraged.
Issues, difficulties are part of life and trouble is the truth of
success. As someone has said that "God did not promise that the sky
will always be blue, there will be full of flowers filled with life, God has
not promised that there will be no clouds if there is sun, no happiness, no
sorrow. There will be no pain. I have no qualms about making my
life an example for everyone, but it may be that a desolate child who lives in
an anonymous place who belongs to a section of society, read it and gets rest,
read it and his Hope brightens up. It may be that they bring some
children out of hope and that they feel compulsion should not feel compelled.
They believe that God is with them wherever they are. Wish every Indian
has a burning flame, and the flame of that flame will brighten the whole sky.
BOOK REVIEW
|
Name of the Book |
|
Name of the Author |
Dr. APJ Abdul Kalam |
|
Name of the Publisher |
Rupa Publications |
|
Pages |
160 |
|
Cost of the Book |
Rs. 156/- |
My Journey is a book, where Kalam Sir has penned down his experiences and lessons that life has taught him. My journey focuses more on the smaller, lesser known happenings in his life with great teachings for the readers. In this book Kalam Sir writes about his father, from whom he learnt the quality of humbleness, loyalty and faith in God. He writes about his father’s friendship with a Hindu priest, with a father of a church and how they maintained peace and harmony.
He writes about his teacher, who tried to separate Kalam from his best friend just because he was a Muslim and how these three divine people took action to maintain equality in their town. He further writes about his mother and grandmother who gave their share of food so that children of the house don’t remain hungry, he writes about poor income of the family.
His sister Firoza who sold her jewelleries so that Kalam Sir could go for further studies, he writes about his school, about professors in college, teachers in school, Leadership quality of Vikram Sarabhai, about his work as a newspaper seller boy at the age of eight, Sudhakar’s story of courage, importance of Holy scriptures and about his life.
This is a must read and must have book. This book can be read by people of any age be it a child, a youth or an adult. This book should also be read by teachers where he actually defines what teachers exactly means, this book should be read by the management of school and college to understand that quality does not come from a great building or great facilities or great advertisements, it happens when education is imparted with love by great teachers.
This book should be read by youths and adults where he explains to never stop dreaming, this book should also be read by small children where he explains about hard work that should be imparted to children in small age. His description about various Holy Scriptures, about life and death, about the quality of a leader, about his energy and enthusiasm to work at a very small age, about his dream, about destiny and in between poems surely touches the heart of reader. Every story covered in this book is nostalgic and gives us beautiful lessons. For me this book is no less than a Holy Scripture.
- Keshav Ram Sharma, Librarian KV Hamirpur
Link for for Questions - Answer based on above Book Review : Click and solve
प्रिय छात्रो !
निम्न दिए गए लिंक पर जाकर मुंशी प्रेम चंद जी जन्म माह प्रश्नोत्तरी में भाग लें | प्रेम चंद जी की जीवनी आपको पहले भेजी जा चुकी है, प्रश्नोत्तरी उसी पर आधारित है :-
👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
https://docs.google.com/forms/d/1RV-ig3-fErY9XqFcDbNxI5tNSidDvauhOASmCj0kByw/edit
केशव राम शर्मा
पुस्तकालयाध्यक्ष
जन्म : 31 जुलाई 1880 बनारस।
पिता : अजीब राय।
माता : आनंदी देवी।
पत्नी : शिवरानी देवी।
प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव वाले प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया।
आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में की तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं।
प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी देती है।
आरंभिक जीवन :
मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर के निकट लमही गाव में हुआ था इनके पिता का नाम अजायबराय था जो की लमही गाव में ही डाकघर के मुंशी थे और इनकी माता का नाम आनंदी देवी था मुंशी प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था लेकिन इन्हें मुंशी प्रेमचन्द और नवाब राय के नाम से ज्यादा जाना जाता है।
प्रेमचन्द का बचपन काफी कष्टमय बिता महज सात वर्ष पूरा करते करते ही इनकी माता का देहांत हो गया तत्पश्चात इनके पिता की नौकरी गोरखपुर में हो गया जहा पर इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली लेकिन कभी भी प्रेमचन्द को अपनी सौतेली माँ से अपने माँ जैसा प्यार नही मिला और फिर चौदह साल की उम्र में इनके पिताजी का भी देहांत हो गया इस तरह इनके बचपन में इनके उपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।
धनपतराय की उम्र जब केवल आठ साल की थी तो माता के स्वर्गवास हो जाने के बाद से अपने जीवन के अन्त तक लगातार विषम परिस्थितियों का सामना धनपतराय को करना पड़ा। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक प्रेम व स्नेह को चाहते हुए भी ना पा सका। आपका जीवन गरीबी में ही पला। कहा जाता है कि आपके घर में भयंकर गरीबी थी। पहनने के लिए कपड़े न होते थे और न ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली माँ का व्यवहार भी हालत को खस्ता करने वाला था।
विवाह के एक साल बाद ही पिताजी का देहान्त हो गया। अचानक आपके सिर पर पूरे घर का बोझ आ गया। एक साथ पाँच लोगों का खर्चा सहन करना पड़ा। पाँच लोगों में विमाता, उसके दो बच्चे पत्नी और स्वयं। प्रेमचन्द की आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अभाव में उन्हें अपना कोट बेचना पड़ा और पुस्तकें बेचनी पड़ी।
एक दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक हेडमास्टर मिले जिन्होंने आपको अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया। अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में आप अपने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। इसी बीच पिता का देहान्त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया।
महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होने 1921 में अपनी नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद कुछ दिनों तक उन्होने ने मर्यादा नामक पत्रिका में सम्पादन का कार्य किया।उसके बाद छह साल तक माधुरी नामक पत्रिका में संपादन का काम किया। 1930 से 1932 के बीच उन्होने अपना खुद का मासिक पत्रिका हंस एवं साप्ताहिक पत्रिका जागरण निकलना शुरू किया। कुछ दिनों तक उन्होने ने मुंबई मे फिल्म के लिए कथा भी लिखी।
उनकी कहानी पर बनी फिल्म का नाम मज़दूर था, यह 1934 में प्रदर्शित हुई। परंतु फिल्मी दुनिया उन्हे रास नहीं आयी और वह अपने कांट्रैक्ट को पूरा किए बिना ही बनारस वापस लौट आए। प्रेमचंद ने मूल रूप से हिन्दी मे 1915 से कहानियां लिखना शुरू किया। उनकी पहली हिन्दी कहानी 1925 में सरस्वती पत्रिका में सौत नाम से प्रकाशित हुई। 1918 ई से उन्होने उपन्यास लिखना शुरू किया। उनके पहले उपन्यास का नाम सेवासदन है। प्रेमचंद ने लगभग बारह उपन्यास तीन सौ के करीब कहानियाँ कई लेख एवं नाटक लिखे है।
लेखन कार्य :
प्रेमचंद ने अपने जीवन में तक़रीबन 300 लघु कथाये और 14 उपन्यास, बहोत से निबंध और पत्र भी लिखे है। इतना ही नही उन्होंने बहोत से बहु-भाषिक साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है। प्रेमचंद की बहोत सी प्रसिद्ध रचनाओ का उनकी मृत्यु के बाद इंग्लिश अनुवाद भी किया गया है। सादे एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचंद हमेशा मस्त रहते थे।
उनके जीवन में वे हमेशा चुनौतियों और मुश्किलों का सामना करते थे। उनके दिल में हमेशा अपने मित्रो के लिये प्रेम भाव होता था और साथ ही गरीब एवं पीडितो के लिये सहानुभूति का सागर भी बसा होता था। प्रेमचंद एक उच्चकोटि के इंसान थे। जीवन में न तो उनको कभी सुख-चैन का विलास मिला और न ही उनकी इसकी तमन्ना थी. तमाम महापुरुषों की तरह वे भी अपना काम स्वयम करना ही पसंद करते थे।
1900 में मुंशी प्रेमचंद को बहरीच के सरकारी जिला स्कूल में असिस्टेंट टीचर का जॉब भी मिल गया जिसमे उन्हें महीने के 20 रुपये पगार के रूप में मिलते थे. तीन महीने बाद उनका स्थानान्तरण प्रतापगढ़ की जिला स्कूल में हुआ. जहा वे एडमिनिस्ट्रेटर के बंगले में रहते थे और उनके बेटे को पढ़ाते थे.
धनपत राय ने अपना पहला लेख “नवाब राय” के नाम से ही लिखा था. उनका पहला लघु उपन्यास असरार ए मा’बिद (हिंदी में – देवस्थान रहस्य) था जिसमे उन्होंने मंदिरों में पुजारियों द्वारा की जा रही लुट-पात और महिलाओ के साथ किये जा रहे शारीरिक शोषण के बारे में बताया. उनके सारे लेख और उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 से फेब्रुअरी 1905 तक बनारस पर आधारित उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्कफ्रोम में प्रकाशित किये जाते थे.
प्रेमचंद के नाम से उनकी पहली कहानी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर 1910 मे प्रकाशित हुई। इस कहानी का नाम बड़े घर की बेटी था। अपने लेखन काल मे प्रेमचंद ने सैकड़ो कहानियां लिखी। उन्होने ने हिन्दी लेखन में यथार्थवाद की शुरुआत की। उनके रचनाओ में हमे कई रंग देखने को मिलते है। मुख्य रूप से प्रेमचंद ने तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियो का सजीव वर्णन अपने साहित्यिक रचना के माध्यम से किया है। उनकी रचनाओ में हमे तत्कालीन दलित समाज, स्त्री दशा एवं समाज में व्याप्त विसंगतियाँ का दर्शन प्रत्यक्ष रूप से होता है।
प्रेमचंद ने 1901 मे उपन्यास लिखना शुरू किया। कहानी 1907 से लिखने लगे। उर्दू में नवाबराय नाम से लिखते थे। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों लिखी गई उनकी कहानी सोज़ेवतन 1910 में ज़ब्त की गई , उसके बाद अंग्रेज़ों के उत्पीड़न के कारण वे प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। 1923 में उन्होंने सरस्वती प्रेस की स्थापना की। 1930 में हंस का प्रकाशन शुरु किया। इन्होने 'मर्यादा', 'हंस', जागरण' तथा 'माधुरी' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया।
जीवन के अन्तिम दिनों के एक वर्ष छोड़कर, सन् (33-34) जो बम्बई की फिल्मी दुनिया में बीता, उनका पूरा समय बनारस और लखनऊ में गुजरा, जहाँ उन्होंने अनेक पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन किया और अपना साहित्य सृजन करते रहे । भारत के हिन्दी साहित्य में प्रेमचन्द का नम अमर है। उन्होंने हिन्दी कहानी को एक नयी पहचान व नया जीवन दिया।
आधुनिक कथा साहित्य के जन्मदाता कहलाए। उन्हें कथा सम्राट की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने 300 से अधिक कहानियां लिखी हैं। इन कहानियों में उन्होंने मनुष्य के जीवन का सच्चा चित्र खींचा है। आम आदमी की घुटन, चुभन व कसक को अपनी कहानियों में उन्होंने प्रतिबिम्बित किया। इन्होंने अपनी कहानियों में समय को ही पूर्ण रूप से चित्रित नहीं किया वरन भारत के चिंतन व आदर्शों को भी वर्णित किया है। 8 अक्टूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हुआ’
पुस्तके :
• गोदान 1936
• कर्मभूमि 1932
• निर्मला 1925
• कायाकल्प 1927
• रंगभूमि 1925
• सेवासदन 1918
• गबन 1928
• प्रेमचन्द की अमर कहानिया
• नमक का दरोगा
• दो बैलो की कथा
• पूस की रात
• पंच परमेश्वर
• माता का हृदय
• नरक का मार्ग
• वफ़ा का खंजर
• पुत्र प्रेम
• घमंड का पुतला
• बंद दरवाजा
• कायापलट
• कर्मो का फल
• कफन
• बड़े घर की बेटी
• राष्ट्र का सेवक
• ईदगाह
• मंदिर और मस्जिद
• प्रेम सूत्र
• माँ
• वरदान
• काशी में आगमन
• बेटो वाली विधवा
• सभ्यता का रहस्य